Saturday 22 February 2014
Friday 14 February 2014
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिलेंगीः सर्वे
आगामी लोक सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अब तक की अधिकतम सीटें
मिलेंगी. यह बात एक निजी टीवी चैनल के सर्वेक्षण से सामने आई है. उसके
मुताबिक अगर अभी चुनाव हो तो कांग्रेस अब तक के अपने न्यूनतम पर चली जाएगी.
सर्वे के मुताबिक लोक सभा चुनाव में हालांकि बीजेपी सबसे ज्यादा सीटें लाएगी, लेकिन एनडीए तब भी बहुमत से दूर रहेगा. गुरुवार को जारी इस सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक लोक सभा चुनाव में बीजेपी की 202 सीटें आने की उम्मीद है और उसके समर्थकों को 25 सीटें मिल सकती हैं. कुल मिलाकर एनडीए को 227 सीटें मिलेंगी.
इसके विपरीत कांग्रेस को महज 89 सीटें मिल सकती हैं, जो उसका न्यूनतम होगा. उसके सहयोगी दलों को 12 सीटें मिलेंगी और वह मुश्किल से 100 का आंकड़ा पार कर पाएगी. सर्वे में यह भी बताया गया है कि अन्य पार्टियां 215 सीटें जीत सकती हैं और उनमें से कई ऐसी हैं, जिन्होंने पहले बीजेपी से हाथ मिलाया था. इससे नरेंद्र मोदी के समर्थक खुश हो सकते हैं.
समझा जाता है कि एनडीए को कुल वोट प्रतिशत का 36 प्रतिशत मिलेगा, जबकि यूपीए को 22 प्रतिशत तथा अन्य को 42 प्रतिशत. जहां कांग्रेस को 2009 में 206 सीटें मिली थीं वहीं इस बार उसे महज 89 सीटें मिलने की संभावना का कारण यह है कि पूरे देश में पार्टी के प्रदर्शन में गिरावट देखने में आ रही है.
मसलन आंध्र प्रदेश जहां पिछली बार पार्टी को जबर्दस्त सफलता मिली थी और 33 सीटें भी मिली थीं वहां इस बार पार्टी को महज 6 सीटें मिलेंगी. उत्तर प्रदेश में पार्टी को सिर्फ 4 सीटें ही मिलने की संभावना है. पिछली बार वहां से 21 सांसद चुनकर आए थे. राजस्थान में पार्टी को पिछली बार की 20 सीटों की बजाय सिर्फ 4 सीटें मिलेंगी.
सिर्फ कर्नाटक और छत्तीसगढ़ ऐसे राज्य हैं जहां पार्टी से कुछ बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है. कर्नाटक से पार्टी को 14 सीटें मिल सकती हैं जबकि पिछली बार सिर्फ 6 सीटें मिली थीं. इसी तरह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को 3 सीटें मिल सकती हैं जबकि उड़ीसा में 7 सीटें मिल सकती हैं जबकि पिछली बार 6 सीटें मिली थीं.
कांग्रेस के विपरीत बीजेपी के खाते में बढ़ोतरी सभी राज्यों में दिख रही है. बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा उत्तर प्रदेश में होगा जहां उसे 34 सीटें मिल सकती हैं. पिछली बार उसे यहां 10 सीटें मिली थीं. राजस्थान में उसे 21 सीटें मिलेंगी जबकि पिछली बार 4 सीटें मिली थीं.
आम आदमी पार्टी का प्रदर्शनइस बार आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन पर सभी की नजरें रहेंगी. सर्वे के मुताबिक उसे 7 सीटें मिल सकती हैं. इसमें से चार सीटें सिर्फ दिल्ली से ही मिलेंगी. जहां तक वोट शेयर की बात है तो उसे कुल वोट का 8 प्रतिशत तक मिल सकता है. यह प्रतिशत कांग्रेस और बीजेपी को छोड़कर किसी भी अन्य पार्टी से ज्यादा रहेगा.
बिहार में जेडी(यू) को झटकाबिहार में नीतीश बाबू का बीजेपी से अलग होना उन्हें महंगा पड़ेगा. वहां बीजेपी को 21 सीटें मिल सकती हैं जबकि पिछली बार 12 सीटें मिली थीं. नीतीश बाबू की पार्टी जेडी (यू) का सूपड़ा साफ होने की पूरी संभावना है और उन्हें महज 5 सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है.
इनका भी रहेगा जलवावो पार्टियां जो न तो कांग्रेस के साथ हैं और न ही बीजेपी के साथ, उन्हें काफी सीटें मिलेंगी. मसलन अन्नाद्रमुक और वाम दलों को 27-27 सीटें मिल सकती हैं जबकि ममता की पार्टी तृणमूल को 24, बीएसपी को 21 और सपा को 20 सीटें तक मिल सकती हैं.
ये भी कम नहींबीजेपी के अलावा जिन पार्टियों का प्रदर्शन बेहतर रहेगा उनमें अन्नाद्रमुक भी है जिसके सांसदों की संख्या 9 से बढ़कर 27 हो सकती है. वाईएसआर कांग्रेस को 13 सीटें मिल सकती हैं जबकि पिछली बार उसे कोई सीट नहीं मिली थी. टीआरएस को 10 सीटें मिल सकती हैं जबकि पिछली बार उसे 2 सीटें ही मिली थीं. इसी तरह तेलुगु देसम पार्टी को भी फायदा हो सकता है.
शरद पवार की पार्टी एनसीपी को इस बार धक्का लगेगा और उसे कुल 5 सीटें ही मिल पाएंगी जबकि पिछली बार 9 सीटें मिली थीं.
सर्वे के मुताबिक लोक सभा चुनाव में हालांकि बीजेपी सबसे ज्यादा सीटें लाएगी, लेकिन एनडीए तब भी बहुमत से दूर रहेगा. गुरुवार को जारी इस सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक लोक सभा चुनाव में बीजेपी की 202 सीटें आने की उम्मीद है और उसके समर्थकों को 25 सीटें मिल सकती हैं. कुल मिलाकर एनडीए को 227 सीटें मिलेंगी.
इसके विपरीत कांग्रेस को महज 89 सीटें मिल सकती हैं, जो उसका न्यूनतम होगा. उसके सहयोगी दलों को 12 सीटें मिलेंगी और वह मुश्किल से 100 का आंकड़ा पार कर पाएगी. सर्वे में यह भी बताया गया है कि अन्य पार्टियां 215 सीटें जीत सकती हैं और उनमें से कई ऐसी हैं, जिन्होंने पहले बीजेपी से हाथ मिलाया था. इससे नरेंद्र मोदी के समर्थक खुश हो सकते हैं.
समझा जाता है कि एनडीए को कुल वोट प्रतिशत का 36 प्रतिशत मिलेगा, जबकि यूपीए को 22 प्रतिशत तथा अन्य को 42 प्रतिशत. जहां कांग्रेस को 2009 में 206 सीटें मिली थीं वहीं इस बार उसे महज 89 सीटें मिलने की संभावना का कारण यह है कि पूरे देश में पार्टी के प्रदर्शन में गिरावट देखने में आ रही है.
मसलन आंध्र प्रदेश जहां पिछली बार पार्टी को जबर्दस्त सफलता मिली थी और 33 सीटें भी मिली थीं वहां इस बार पार्टी को महज 6 सीटें मिलेंगी. उत्तर प्रदेश में पार्टी को सिर्फ 4 सीटें ही मिलने की संभावना है. पिछली बार वहां से 21 सांसद चुनकर आए थे. राजस्थान में पार्टी को पिछली बार की 20 सीटों की बजाय सिर्फ 4 सीटें मिलेंगी.
सिर्फ कर्नाटक और छत्तीसगढ़ ऐसे राज्य हैं जहां पार्टी से कुछ बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है. कर्नाटक से पार्टी को 14 सीटें मिल सकती हैं जबकि पिछली बार सिर्फ 6 सीटें मिली थीं. इसी तरह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को 3 सीटें मिल सकती हैं जबकि उड़ीसा में 7 सीटें मिल सकती हैं जबकि पिछली बार 6 सीटें मिली थीं.
कांग्रेस के विपरीत बीजेपी के खाते में बढ़ोतरी सभी राज्यों में दिख रही है. बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा उत्तर प्रदेश में होगा जहां उसे 34 सीटें मिल सकती हैं. पिछली बार उसे यहां 10 सीटें मिली थीं. राजस्थान में उसे 21 सीटें मिलेंगी जबकि पिछली बार 4 सीटें मिली थीं.
आम आदमी पार्टी का प्रदर्शनइस बार आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन पर सभी की नजरें रहेंगी. सर्वे के मुताबिक उसे 7 सीटें मिल सकती हैं. इसमें से चार सीटें सिर्फ दिल्ली से ही मिलेंगी. जहां तक वोट शेयर की बात है तो उसे कुल वोट का 8 प्रतिशत तक मिल सकता है. यह प्रतिशत कांग्रेस और बीजेपी को छोड़कर किसी भी अन्य पार्टी से ज्यादा रहेगा.
बिहार में जेडी(यू) को झटकाबिहार में नीतीश बाबू का बीजेपी से अलग होना उन्हें महंगा पड़ेगा. वहां बीजेपी को 21 सीटें मिल सकती हैं जबकि पिछली बार 12 सीटें मिली थीं. नीतीश बाबू की पार्टी जेडी (यू) का सूपड़ा साफ होने की पूरी संभावना है और उन्हें महज 5 सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है.
इनका भी रहेगा जलवावो पार्टियां जो न तो कांग्रेस के साथ हैं और न ही बीजेपी के साथ, उन्हें काफी सीटें मिलेंगी. मसलन अन्नाद्रमुक और वाम दलों को 27-27 सीटें मिल सकती हैं जबकि ममता की पार्टी तृणमूल को 24, बीएसपी को 21 और सपा को 20 सीटें तक मिल सकती हैं.
ये भी कम नहींबीजेपी के अलावा जिन पार्टियों का प्रदर्शन बेहतर रहेगा उनमें अन्नाद्रमुक भी है जिसके सांसदों की संख्या 9 से बढ़कर 27 हो सकती है. वाईएसआर कांग्रेस को 13 सीटें मिल सकती हैं जबकि पिछली बार उसे कोई सीट नहीं मिली थी. टीआरएस को 10 सीटें मिल सकती हैं जबकि पिछली बार उसे 2 सीटें ही मिली थीं. इसी तरह तेलुगु देसम पार्टी को भी फायदा हो सकता है.
शरद पवार की पार्टी एनसीपी को इस बार धक्का लगेगा और उसे कुल 5 सीटें ही मिल पाएंगी जबकि पिछली बार 9 सीटें मिली थीं.
आसाराम जज से बोले- साहब ये मेरा अंतिम प्रणाम, थक गया हूं आते-आते
प्रवचन करने वाले आसाराम और चार अन्य ने एक नाबालिग के यौन उत्पीड़न के
मामले में जोधपुर जिला और सत्र अदालत द्वारा पढ़े गए आरोपों पर खुद को
बेगुनाह कहा.
एक हिंदी अबखार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक आसाराम ने कोर्ट में अपने इलाज को लेकर असंतोष जताया. आरोप सुनाते समय उनके पिता का नाम पूछा गया तो आसाराम ने कहा कि वे अब नहीं हैं. अपनी उम्र भी नहीं बताई. आसाराम कोर्ट पहुंचते ही जज से बोले कि साहब मेरा यह अंतिम प्रणाम हो सकता है. मैं अब यहां आते-आते थक गया हूं.
आसाराम और चार सह आरोपियों ने अपने खिलाफ लगाए आरोपों को खारिज कर दिया और मुकदमे का रास्ता चुना, जिसके बाद न्यायाधीश मनोज कुमार व्यास ने सुनवाई 17 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी. आरोपों को सुनने के बाद आसाराम अदालत में उदास हो गए, लेकिन जेल लौटते समय बस में सवार होने के दौरान उन्होंने कहा कि सब कुछ ठीक हो जाएगा.
शिवा और शिल्पी समेत चार अन्य आरोपी अदालत में पेश हुए, जिन्हें जमानत दी जा चुकी है. अदालत ने आसाराम के खिलाफ बलात्कार, आपराधिक षड्यंत्र और अन्य अपराधों के मामले में शुक्रवार को आरोप तय किए थे.
इस बीच आसाराम के वकील ने अदालत में आवेदन करके दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज पीडि़ता के बयानों को उपलब्ध कराने के लिए कहा है.
एक हिंदी अबखार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक आसाराम ने कोर्ट में अपने इलाज को लेकर असंतोष जताया. आरोप सुनाते समय उनके पिता का नाम पूछा गया तो आसाराम ने कहा कि वे अब नहीं हैं. अपनी उम्र भी नहीं बताई. आसाराम कोर्ट पहुंचते ही जज से बोले कि साहब मेरा यह अंतिम प्रणाम हो सकता है. मैं अब यहां आते-आते थक गया हूं.
आसाराम और चार सह आरोपियों ने अपने खिलाफ लगाए आरोपों को खारिज कर दिया और मुकदमे का रास्ता चुना, जिसके बाद न्यायाधीश मनोज कुमार व्यास ने सुनवाई 17 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी. आरोपों को सुनने के बाद आसाराम अदालत में उदास हो गए, लेकिन जेल लौटते समय बस में सवार होने के दौरान उन्होंने कहा कि सब कुछ ठीक हो जाएगा.
शिवा और शिल्पी समेत चार अन्य आरोपी अदालत में पेश हुए, जिन्हें जमानत दी जा चुकी है. अदालत ने आसाराम के खिलाफ बलात्कार, आपराधिक षड्यंत्र और अन्य अपराधों के मामले में शुक्रवार को आरोप तय किए थे.
इस बीच आसाराम के वकील ने अदालत में आवेदन करके दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज पीडि़ता के बयानों को उपलब्ध कराने के लिए कहा है.
केजरीवाल के इस्तीफे की धमकी के बीच दिल्ली विधानसभा में आज पेश होगा जनलोकपाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि यदि शुक्रवार को
विधानसभा में जन लोकपाल विधेयक पारित नहीं हुआ तो वे अपने पद से इस्तीफा दे
देंगे. केजरीवाल जिस जनलोकपाल बिल को पेश करने पर आमादा हैं उस जनलोकपाल
की राह में रोड़ा उस दिन आया जब उपराज्यपाल ने सॉलिसिटर जनरल से राय मांगी.
पता चला दिल्ली के जनलोकपाल बिल के लिए केंद्र की मंजूरी जरूरी है. बस
यहीं से दिल्ली सरकार बनाम केन्द्र की जंग शुरू हो गई.
केजरीवाल पूरी तैयारी कर चुके थे. अपने मंत्रियों के साथ बैठक कर जनलोकपाल बिल का महत्वाकांक्षी मसौदा बनाया. फिर पेश करने की बारी आई. केजरीवाल ने कहा जनता के सामने उनका जनलोकपाल पेश होगा. इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम से भ्रष्टाचार से मुक्ति का लोकपाल सामने आएगा. बीच में दिल्ली के उपराज्यपाल आ गए. उपराज्यपाल ने सॉलिसिटर जनरल मोहन परासरन से जनलोकपाल पर राय ली और उनकी राय को सार्वजनिक कर दिया कि दिल्ली का जनलोकपाल बिल केन्द्र की मंजूरी के बिना असंवैधानिक है. मीडिया ने खबर ने चलाई और केजरीवाल ने कलम. 7 फऱवरी को उन्होंने उपराज्यपाल को शिकायती खत लिख भेजा.
केजरीवाल ने खत में लिखा, ''जब मैंने टीवी चैनलों पर यह खबर सुनी तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा. क्योंकि उस बिल की कॉपी तो हमने आपको कल शाम को ही भेजी है. तो आपने किस बिल पर सॉलिसिटर जनरल की राय मांगी. उन्होंने भी आपको किस बिल पर राय दी। आपने कोई राय मांगी भी थी मुझसे चर्चा कर लेते. मैं आपको बिल की कॉपी दिखा कर सारी बातें समझा देता. लेकिन स़ॉलिसिटर जनरल की राय मीडिया में दे दी गई.'
खबर से खेल शुरू हुआ और जंग में बदलने लगा. दिल्ली के दावेदार और भारत की सरकार आमने सामने. उपराज्यपाल के पास दलील थी कि दिल्ली विधानसभा में किसी भी बिल को पेश करने से पहले केन्द्र की मंजूरी चाहिए, जबकि अरविंद केजरीवाल संविधान खंगालने लगे. लड़ाई लंबी होती गई. इस्तीफे तक जा पहुंची और केजरीवाल ने कह दिया कि जनलोकपाल के लिए सीएम की ऐसी सौ सौ कुर्सियां कुर्बान.
फिर केन्द्र ने एक नया शिगूफा छोड़ा कि स्टेडियम में जनलोकपाल पेश करते हुए 2 हजार लोगों की सुरक्षा देने में दिल्ली पुलिस नाकाम है. इस जंग में संविधान है, 2002 का गृह मंत्रालय की ओर से दिया गया आदेश है, दिल्ली विधानसभा के अधिकार हैं और केजरीवाल के वचन, उनकी नैतिकता है. कानून के जानकारों की भी अपनी अपनी राय है. इन सबसे ऊपर दिल्ली की विधानसभा है, जहां केजरीवाल जनलोकपाल बिल पेश करने वाले हैं
केजरीवाल पूरी तैयारी कर चुके थे. अपने मंत्रियों के साथ बैठक कर जनलोकपाल बिल का महत्वाकांक्षी मसौदा बनाया. फिर पेश करने की बारी आई. केजरीवाल ने कहा जनता के सामने उनका जनलोकपाल पेश होगा. इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम से भ्रष्टाचार से मुक्ति का लोकपाल सामने आएगा. बीच में दिल्ली के उपराज्यपाल आ गए. उपराज्यपाल ने सॉलिसिटर जनरल मोहन परासरन से जनलोकपाल पर राय ली और उनकी राय को सार्वजनिक कर दिया कि दिल्ली का जनलोकपाल बिल केन्द्र की मंजूरी के बिना असंवैधानिक है. मीडिया ने खबर ने चलाई और केजरीवाल ने कलम. 7 फऱवरी को उन्होंने उपराज्यपाल को शिकायती खत लिख भेजा.
केजरीवाल ने खत में लिखा, ''जब मैंने टीवी चैनलों पर यह खबर सुनी तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा. क्योंकि उस बिल की कॉपी तो हमने आपको कल शाम को ही भेजी है. तो आपने किस बिल पर सॉलिसिटर जनरल की राय मांगी. उन्होंने भी आपको किस बिल पर राय दी। आपने कोई राय मांगी भी थी मुझसे चर्चा कर लेते. मैं आपको बिल की कॉपी दिखा कर सारी बातें समझा देता. लेकिन स़ॉलिसिटर जनरल की राय मीडिया में दे दी गई.'
खबर से खेल शुरू हुआ और जंग में बदलने लगा. दिल्ली के दावेदार और भारत की सरकार आमने सामने. उपराज्यपाल के पास दलील थी कि दिल्ली विधानसभा में किसी भी बिल को पेश करने से पहले केन्द्र की मंजूरी चाहिए, जबकि अरविंद केजरीवाल संविधान खंगालने लगे. लड़ाई लंबी होती गई. इस्तीफे तक जा पहुंची और केजरीवाल ने कह दिया कि जनलोकपाल के लिए सीएम की ऐसी सौ सौ कुर्सियां कुर्बान.
फिर केन्द्र ने एक नया शिगूफा छोड़ा कि स्टेडियम में जनलोकपाल पेश करते हुए 2 हजार लोगों की सुरक्षा देने में दिल्ली पुलिस नाकाम है. इस जंग में संविधान है, 2002 का गृह मंत्रालय की ओर से दिया गया आदेश है, दिल्ली विधानसभा के अधिकार हैं और केजरीवाल के वचन, उनकी नैतिकता है. कानून के जानकारों की भी अपनी अपनी राय है. इन सबसे ऊपर दिल्ली की विधानसभा है, जहां केजरीवाल जनलोकपाल बिल पेश करने वाले हैं
Monday 10 February 2014
संसद में तेलंगाना पर हंगामे के बाद कार्यवाही स्थगित, सीमांध्र का विरोध जारी
तेलंगाना को लेकर संसद के दोनों सदनों में सोमवार को खूब हंगामा हुआ.
तेलंगाना के खिलाफ सीमांध्र के सांसदों का विरोध लगातार जारी है. हंगामे के
बाद दोनों सदनों की कार्यवाही मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दी गई.
तेलंगाना बिल कैबिनेट से पास हो चुका है. सरकार का इसी सत्र में बिल पास कराने पर जोर है. वैसे संसद में हंगामे की वजह से कई अहम बिल पहले से ही अधर में लटके हैं.
बिल पेश करने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी
संसद में तेलंगाना विधेयक पेश करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा की गई सिफारिश रविवार को प्रधानमंत्री कार्यालय के मार्फत राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भेजी जा चुकी है. आंध्र प्रदेश के विभाजन के लिए राज्य पुनर्गठन विधेयक के मंगलवार को संसद में पेश होने की संभावना है.
गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'राष्ट्रपति की मंजूरी सोमवार को मिलने की संभावना है. हम संसद में मंगलवार को विधेयक पेश करने की योजना बना रहे हैं.'
केंद्रीय कैबिनेट से मिल चुकी है मंजूरी
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आंध्र प्रदेश के विभाजन के जरिए तेलंगाना के गठन के लिए मसौदा विधेयक को शुक्रवार को मंजूरी दी थी. राज्य विधानसभा द्वारा विधेयक को खारिज करने के बावजूद ऐसा किया गया.
तेलंगाना विरोधी सदस्यों के विरोध के बीच सरकार ने अभी तक इस मुद्दे पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. तेलंगाना का विरोध करने वालों में कांग्रेस सदस्य भी शामिल हैं. यह विधेयक राज्यसभा में इसलिए पेश किया जा रहा है, क्योंकि ऐसा लगता है कि सरकार इसे लोकसभा भंग होने के बावजूद अस्तित्व में बनाए रखना चाहती है. उच्च सदन में पेश और इसके द्वारा पारित नहीं किया गया विधेयक लाइव रजिस्टर में बना रहता है.
बिल के स्वरूप में बदलाव नहीं
समझा जा रहा है कि विवादास्पद विधेयक को उसी स्वरूप में राज्यसभा में पेश किया जाएगा, जैसे कि उसे आंध्र प्रदेश विधानसभा में भेजा गया था. हालांकि केन्द्र सरकार इस विधेयक को विचार के लिए रखे जाने के समय इस पर 32 संशोधन पेश करेगी.
प्रस्तावित तेलंगाना विधेयक में हैदराबाद को केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा प्रदान नहीं किया गया है, हालांकि इसे लेकर काफी मांग की जा रही थी. इस बिल में रायलसीमा व उत्तरी तटीय आंध्र के लिए एक विशेष पैकेज की घोषणा की जा सकती है, ताकि वहां के लोगों की चिंताओं को दूर किया जा सके. कैबिनेट ने काफी लंबे विचार-विमर्श के बाद आंध्र प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को मंजूरी दी थी. इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी की कोर ग्रुप की बैठक हुई.
मौजूदा लोकसभा का अंतिम सेशन
पन्द्रहवीं लोकसभा का मौजूदा सत्र अंतिम होने के कारण सरकार चाहती है कि सेशन के दौरान ही चर्चा कराकर इसे पारित करवाया जाए. सरकार ने इस विधेयक को ऐसे समय में संसद की मंजूरी दिलवाने का निर्णय किया है, जब आंध्र प्रदेश विधानसभा इसे खारिज कर चुकी है तथा कांग्रेस के सीएम किरण कुमार रेड्डी राज्य के प्रस्तावित विभाजन का विरोध कर रहे हैं. रेड्डी ने दिल्ली में धरना भी दिया था और राज्य के विभाजन को रोकने के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात कर उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की थी.
तेलंगाना बिल कैबिनेट से पास हो चुका है. सरकार का इसी सत्र में बिल पास कराने पर जोर है. वैसे संसद में हंगामे की वजह से कई अहम बिल पहले से ही अधर में लटके हैं.
बिल पेश करने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी
संसद में तेलंगाना विधेयक पेश करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा की गई सिफारिश रविवार को प्रधानमंत्री कार्यालय के मार्फत राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भेजी जा चुकी है. आंध्र प्रदेश के विभाजन के लिए राज्य पुनर्गठन विधेयक के मंगलवार को संसद में पेश होने की संभावना है.
गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'राष्ट्रपति की मंजूरी सोमवार को मिलने की संभावना है. हम संसद में मंगलवार को विधेयक पेश करने की योजना बना रहे हैं.'
केंद्रीय कैबिनेट से मिल चुकी है मंजूरी
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आंध्र प्रदेश के विभाजन के जरिए तेलंगाना के गठन के लिए मसौदा विधेयक को शुक्रवार को मंजूरी दी थी. राज्य विधानसभा द्वारा विधेयक को खारिज करने के बावजूद ऐसा किया गया.
तेलंगाना विरोधी सदस्यों के विरोध के बीच सरकार ने अभी तक इस मुद्दे पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. तेलंगाना का विरोध करने वालों में कांग्रेस सदस्य भी शामिल हैं. यह विधेयक राज्यसभा में इसलिए पेश किया जा रहा है, क्योंकि ऐसा लगता है कि सरकार इसे लोकसभा भंग होने के बावजूद अस्तित्व में बनाए रखना चाहती है. उच्च सदन में पेश और इसके द्वारा पारित नहीं किया गया विधेयक लाइव रजिस्टर में बना रहता है.
बिल के स्वरूप में बदलाव नहीं
समझा जा रहा है कि विवादास्पद विधेयक को उसी स्वरूप में राज्यसभा में पेश किया जाएगा, जैसे कि उसे आंध्र प्रदेश विधानसभा में भेजा गया था. हालांकि केन्द्र सरकार इस विधेयक को विचार के लिए रखे जाने के समय इस पर 32 संशोधन पेश करेगी.
प्रस्तावित तेलंगाना विधेयक में हैदराबाद को केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा प्रदान नहीं किया गया है, हालांकि इसे लेकर काफी मांग की जा रही थी. इस बिल में रायलसीमा व उत्तरी तटीय आंध्र के लिए एक विशेष पैकेज की घोषणा की जा सकती है, ताकि वहां के लोगों की चिंताओं को दूर किया जा सके. कैबिनेट ने काफी लंबे विचार-विमर्श के बाद आंध्र प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को मंजूरी दी थी. इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी की कोर ग्रुप की बैठक हुई.
मौजूदा लोकसभा का अंतिम सेशन
पन्द्रहवीं लोकसभा का मौजूदा सत्र अंतिम होने के कारण सरकार चाहती है कि सेशन के दौरान ही चर्चा कराकर इसे पारित करवाया जाए. सरकार ने इस विधेयक को ऐसे समय में संसद की मंजूरी दिलवाने का निर्णय किया है, जब आंध्र प्रदेश विधानसभा इसे खारिज कर चुकी है तथा कांग्रेस के सीएम किरण कुमार रेड्डी राज्य के प्रस्तावित विभाजन का विरोध कर रहे हैं. रेड्डी ने दिल्ली में धरना भी दिया था और राज्य के विभाजन को रोकने के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात कर उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की थी.
मंदिरों में भगवान के साथ नरेंद्र मोदी का भी होगा गुणगान
जल्द ही मठ-मंदिरों में भगवान के साथ-साथ मोदी का गुणगान भी होता दिखे या
सुनाई दे, तो हैरान होने की बात नहीं है. भगवा खेमे ने मोदी को गद्दी पर
पहुंचाने के लिए इस तरह की भी एक योजना बनाई है.
इसके तहत भगवान की आरती व भोग में शामिल होने के लिए आने वाले भक्तों को नरेंद्र मोदी के काम-धाम और 'प्रताप' की भी जानकारी दी जाएगी. इसके लिए मठ-मंदिरों सहित अन्य धार्मिक स्थानों की सूची तैयार कराई जा रही है.
सूची बनाने की जिम्मेदारी बीजेपी के जिलाध्यक्षों को सौंपी गई है. उनसे कहा गया है कि मठ-मंदिरों के पुजारियों से संपर्क करके उनके नाम सहित इस सिलसिले में पूरा ब्योरा तैयार किया जाए, जिसमें इनके मोबाइल नंबर या संपर्क सूत्र का भी उल्लेख हो.
पिछले दिनों लखनऊ में बीजेपी की बैठक में प्रदेश प्रभारी अमित शाह ने इस सिलसिले में जिलाध्यक्षों को कार्य-योजना समझाई. उन्होंने कहा कि सभी जिलाध्यक्ष, मंडल (ब्लॉक), वार्ड व बूथ कमेटियों के प्रभारियों की मदद से उनके क्षेत्र के मठ, मंदिरों, आश्रमों व नदियों की सूची बनाएं. इनमें पूजा-अर्चना करने वाले पुजारियों व पंडों तथा आश्रमों के महंतों से संपर्क करके उनका भी ब्योरा तैयार करें. देश की राजनीतिक व सामाजिक परिस्थितियों का ब्योरा उनके सामने रखकर 'मिशन मोदी' में सहयोग मांगे.
इसके तहत भगवान की आरती व भोग में शामिल होने के लिए आने वाले भक्तों को नरेंद्र मोदी के काम-धाम और 'प्रताप' की भी जानकारी दी जाएगी. इसके लिए मठ-मंदिरों सहित अन्य धार्मिक स्थानों की सूची तैयार कराई जा रही है.
सूची बनाने की जिम्मेदारी बीजेपी के जिलाध्यक्षों को सौंपी गई है. उनसे कहा गया है कि मठ-मंदिरों के पुजारियों से संपर्क करके उनके नाम सहित इस सिलसिले में पूरा ब्योरा तैयार किया जाए, जिसमें इनके मोबाइल नंबर या संपर्क सूत्र का भी उल्लेख हो.
पिछले दिनों लखनऊ में बीजेपी की बैठक में प्रदेश प्रभारी अमित शाह ने इस सिलसिले में जिलाध्यक्षों को कार्य-योजना समझाई. उन्होंने कहा कि सभी जिलाध्यक्ष, मंडल (ब्लॉक), वार्ड व बूथ कमेटियों के प्रभारियों की मदद से उनके क्षेत्र के मठ, मंदिरों, आश्रमों व नदियों की सूची बनाएं. इनमें पूजा-अर्चना करने वाले पुजारियों व पंडों तथा आश्रमों के महंतों से संपर्क करके उनका भी ब्योरा तैयार करें. देश की राजनीतिक व सामाजिक परिस्थितियों का ब्योरा उनके सामने रखकर 'मिशन मोदी' में सहयोग मांगे.
रामबीर शौकीन ने खींचा AAP सरकार से हाथ, LG से मिलेंगे अरविंद केजरीवाल
दिल्ली विधानसभा में निर्दलीय विधायक रामबीर शौकीन ने केजरीवाल सरकार से
समर्थन वापस लेने का फैसला किया है. शौकीन आज उप राज्यपाल नजीब जंग से
मिलकर सरकार से समर्थन वापसी के अपने फैसले से अवगत कराएंगे. दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार
को समर्थन दे रहे एकमात्र जद(यू) विधायक शोएब इकबाल ने हालांकि केजरीवाल
सरकार से समर्थन लेने से इनकार किया है. लेकिन उनके तेवर भी तल्ख नजर आ रहे
हैं. उन्होंने कहा है कि सोमवार को वह राजनीतिक हालात पर उप राज्यपाल से
मिलकर चर्चा करेंगे.
वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी आज उप राज्यपाल से मिलेंगे. केजरीवाल ने कहा है कि अगर जनलोकपाल बिल पास नहीं हुआ तो वह इस्तीफा दे देंगे. इस समय आम आदमी पार्टी के 27 विधायक हैं. कांग्रेस अपने 8 विधायकों के साथ केजरीवाल के समर्थन में खड़ी है. इस तरह कुल 35 विधायक केजरीवाल सरकार के समर्थन में हैं. लेकिन विधानसभा में बहुमत के लिए 36 विधायकों का साथ चाहिए.
बीजेपी और कांग्रेस ने केजरीवाल की इस्तीफा देने की धमकी पर निशाना साधा है. बीजेपी ने कहा है कि इस बिल के जरिए केजरीवाल सरकार राजनीति करना चाहती है. जब एलजी को बिल पर ऐतराज ही नहीं है तो उनसे मंजूरी लेकर बिल पेश करने के पीछे मंशा क्या है?
दिल्ली कांग्रेस के नेता मुकेश शर्मा ने कहा कि उनकी पार्टी मजबूत लोकपाल बिल का समर्थन करती है लेकिन एक असंवैधानिक बिल का किसी सूरत में समर्थन नहीं करेंगे.
रविवार को केजरीवाल की अन्ना हजारे से फिर मुलाकात हुई है. केजरीवाल ने बताया कि अन्ना से जनलोकपाल और स्वराज बिल पर चर्चा हुई और अन्ना ने दोनों बिल पर सहमति जताई.
अन्ना से मुलाकात पर किरण बेदी ने केजरीवाल पर निशाना साधा है. किरण ने ट्वीट किया, 'मुझे हैरानी हो रही है कि दिल्ली लोकायुक्त विधेयक पारित कराने के लिए तैयार किया गया या दूसरों पर इल्जाम लगाकर बच निकलने के लिए तैयार किया गया? दिल्ली के सीएम पद की शपथ लेते समय केजरीवाल अन्ना को भूल गए थे, अब वह फिर से अन्ना का समर्थन मांग रहे हैं
वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी आज उप राज्यपाल से मिलेंगे. केजरीवाल ने कहा है कि अगर जनलोकपाल बिल पास नहीं हुआ तो वह इस्तीफा दे देंगे. इस समय आम आदमी पार्टी के 27 विधायक हैं. कांग्रेस अपने 8 विधायकों के साथ केजरीवाल के समर्थन में खड़ी है. इस तरह कुल 35 विधायक केजरीवाल सरकार के समर्थन में हैं. लेकिन विधानसभा में बहुमत के लिए 36 विधायकों का साथ चाहिए.
बीजेपी और कांग्रेस ने केजरीवाल की इस्तीफा देने की धमकी पर निशाना साधा है. बीजेपी ने कहा है कि इस बिल के जरिए केजरीवाल सरकार राजनीति करना चाहती है. जब एलजी को बिल पर ऐतराज ही नहीं है तो उनसे मंजूरी लेकर बिल पेश करने के पीछे मंशा क्या है?
दिल्ली कांग्रेस के नेता मुकेश शर्मा ने कहा कि उनकी पार्टी मजबूत लोकपाल बिल का समर्थन करती है लेकिन एक असंवैधानिक बिल का किसी सूरत में समर्थन नहीं करेंगे.
रविवार को केजरीवाल की अन्ना हजारे से फिर मुलाकात हुई है. केजरीवाल ने बताया कि अन्ना से जनलोकपाल और स्वराज बिल पर चर्चा हुई और अन्ना ने दोनों बिल पर सहमति जताई.
अन्ना से मुलाकात पर किरण बेदी ने केजरीवाल पर निशाना साधा है. किरण ने ट्वीट किया, 'मुझे हैरानी हो रही है कि दिल्ली लोकायुक्त विधेयक पारित कराने के लिए तैयार किया गया या दूसरों पर इल्जाम लगाकर बच निकलने के लिए तैयार किया गया? दिल्ली के सीएम पद की शपथ लेते समय केजरीवाल अन्ना को भूल गए थे, अब वह फिर से अन्ना का समर्थन मांग रहे हैं
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